Sunday, September 15, 2024

शब्द

कहने को है मेरे पास कुछ भी नही,
या शायद हैं शब्द बहुत,
पर मैं यूँहिं उन्हें कहूँ क्यूँ?

कह दूँ तो खो जाएँगे ये शब्द भीड़ में,
या शायद लौट आएँ टकरा के तुम्हारी चट्टानों से,
पर मैं उन्हें खुद सुनूँ क्यूँ?

कहते हैं लोग कि शब्द होते हैं पैने तीरों के जैसे,
या शायद कुछ होते हैं किसी मलहम की तरह,
पर मैं उसे तुम पर लगाऊँ क्यूँ?

सुना तो ये भी है की शब्द होते हैं व्यर्थ, बेकार,
या शायद कुछ में होती है शक्ति अपार,
पर मैं ये तुम्हें दूँ क्यूँ?

1 comment:

If not here then where...? If not now then when...?